भाई आपकी हर रचना का बडी बेशब्री से इन्तजार रहता हॆ.. सच कहा जिन्दगी बस घडी दो घडी हे.. भाई एक सीक्रेट पूछू.. इतने अच्छे फोटो कहा से आप लगाते हॆ… आपकी हर रचना मे फोटो ऒर भावो मे जन्मजात सहस संसर्ग होता हॆ..
मनुष्य की जन्म जात प्रवृति नहीं है यह फिर भी कुछ लोगों ने जन्म लेते ही दौड़ना शुरू किया कुछ लोगों ने सहारा लिया और चलने लगे चलते चलते उन्हे लगा अब दौड़ना चाहिये जहाँ हर कोई दौड़ रहा हो वहाँ एक जगह खड़े रहना वर्तमान से असहमति माना जा सकता है
दौड़ना उनके संस्कारों में शामिल नहीं था सो वे लड़्खड़ाये गिर पड़े हाँफते हाँफते फिर उठे और दौड़ने लगे उन्हे दौड़ता देख मैं भी दौड़ा हाँलाकि दौड़ में मैं सबसे पीछे था
कोई नई बात नहीं थी यह पर खरगोश और कछुए की कहानी मैने सुन रखी थी ।
Thoughtful lines. Still tough to implement dont know whom to blame whether its me or situation. at times I think I know the way to come out from this race but at times I think i dont know anything n need to start from scratch. 🙂
बहुत खूब !!!
कभी अजनबी सी, कभी जानी पहचानी सी, जिंदगी रोज मिलती है क़तरा-क़तरा…
http://qatraqatra.yatishjain.com/
wonderful poem… hum bhage jaa rahe hain lekin sahi maksad aur manjil ka pata nahi…
भाई आपकी हर रचना का बडी बेशब्री से इन्तजार
रहता हॆ..
सच कहा जिन्दगी बस घडी दो घडी हे..
भाई एक सीक्रेट पूछू..
इतने अच्छे फोटो कहा से आप लगाते हॆ…
आपकी हर रचना मे फोटो ऒर भावो मे जन्मजात सहस संसर्ग होता हॆ..
सभी दौड़ने वालों के बारे में आपने सही लिखा है…
हमारी बात और …
कभी हम दौड़ते भी हैं तो जाने कितनों को खुद से आगे निकल जाने देते हैं…
🙂
🙂
दौड का बहुत सही आंकलन किया है….बधाई
Hello Rajat,
Jiss tarah sachhaai ka bayaan karte hain aap
Wo mann ko choooh jaati hai.
Sachh ko likhna sabse mushkil kaam hai… and aapko wo mahaa-rath haasil hai!
Great job done.
Regards,
Dimple
http://poemshub.blogspot.com
a very good rendering about life
bahut baDhiyaa!!
great poem…
i liked it a lot..
waiting for your next ones..
regards..
shekhar
http://i555.blogspot.com/
यह रही मेरी कविता "दौड़"
दौड़
मनुष्य की जन्म जात प्रवृति नहीं है यह
फिर भी कुछ लोगों ने
जन्म लेते ही दौड़ना शुरू किया
कुछ लोगों ने सहारा लिया
और चलने लगे
चलते चलते उन्हे लगा
अब दौड़ना चाहिये
जहाँ हर कोई दौड़ रहा हो
वहाँ एक जगह खड़े रहना
वर्तमान से असहमति माना जा सकता है
दौड़ना उनके संस्कारों में शामिल नहीं था
सो वे लड़्खड़ाये
गिर पड़े हाँफते हाँफते
फिर उठे और दौड़ने लगे
उन्हे दौड़ता देख मैं भी दौड़ा
हाँलाकि दौड़ में मैं सबसे पीछे था
कोई नई बात नहीं थी यह
पर खरगोश और कछुए की कहानी
मैने सुन रखी थी ।
– शरद कोकास
(साक्षात्कार मार्च2001)
बढ़िया कविता है भई दौड पर । मैने इसी शीर्षक से एक अलग तरह की कविता लिखी है ।
रचना उम्दा है मगर चित्र ग़ज़ब है! एक से बढ़कर एक हैं दोनों।
hello sir, jindgi ka yatharth samjha diya aapne. har koi daudna chahta hai aur aage nikalna chahta hai…. arthpurn kavita….
Bhaaaaaago!
Utkrisht! Achook!
sachhai ko bayan karti behad khubsurat bhavana
best of luck
Bahut sachhi baat kahi haa apne aaj kal sab log bus दौड़ mein hi lage hue haa……..khoobsurat rachna haa…….
आपने सच्ची बातों को बेहतरीन
अंदाज़ में पेश किया है ||
पढकर आनंद आ गया ||
आपके ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा ||
आज फिर आया, नई रचना की उम्मीद लेकर। गुज़ारिश छोड़े जा रहा हूँ।
jindagi ki hook liye ek sundar abhivyakti!
You have a very good blog that the main thing a lot of interesting and beautiful! hope u go for this website to increase visitor.
Thoughtful lines. Still tough to implement dont know whom to blame whether its me or situation. at times I think I know the way to come out from this race but at times I think i dont know anything n need to start from scratch. 🙂
आप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहाँ भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।